आघात का प्रभाव सब पर एक जैसा नहीं पड़ता और न ही इसका असर महसूस करने का कोई सही या गलत तरीका है। हर किसी पर आघात का बुरा प्रभाव पड़ेगा और उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, ऐसा भी नहीं है।
हमें जब कोई आघात पहुंचता है तब हमारे दिमाग का 'थ्रेट सेंटर' यानि वो हिस्सा जो खतरे का सामना करने में हमारी मदद करता है, वह अधिक सतर्क हो जाता है। थ्रेट सेंटर हमें आनेवाले खतरे से सावधान करता है और हमारे शरीर को लड़ने, भागने या स्थिर रहने (फ्लाइट, फाइट या फ्रीज़ होने) के लिए तैयार करता है। कुछ लोगों में हादसे के दौरान या बाद में, जैसे ही थ्रेट सेंटर काम करना शुरू करता है, तब उसके कई दूसरे असर भी दिखाई देते हैं। आघात के कुछ शारीरिक परिणाम हो सकते हैं - चिड़चिड़ापन, ध्यान न लगा पाना और शरीर के अंगों में तनाव। आघात के भावनात्मक परिणाम भी हो सकते हैं जैसी कि बेचैनी, डर, गुस्सा और सूझबूझ का सुन्न पड़ जाना। हमारा दिमाग जब इस अनुभव को पूरी तरह महसूस करने की क्रिया में होता है तब उस हादसे की याद हमें बार-बार आती हैं। कभी फ्लैशबैक में ऐसा लगता है जैसे अभी-अभी वह घटना हमारे साथ घटी हो या कभी डरावने सपनों के रूप में वो यादें हमें सताती हैं।
अधिकतर लोगों में यह शारीरिक और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं कुछ दिनों या हफ़्तों बाद कम होने लगती हैं। हमारे शरीर और मन को इस बात का आभास होने लगता है कि खतरे की घड़ी टल गई है और हम अब सुरक्षित हैं। हमारा थ्रेट सेंटर शांत हो जाता है। कभी-कभी ये यादें अचानक उभर कर सामने आ जाती हैं (किसी सालगिरह पर या उस आघात की कोई निशानी सामने आ जाए तब) और हमें बहुत तक़लीफ़ देती हैं। ये अनुभव किसी भी आघात के बाद हमारे मन और शरीर के दोबारा स्वस्थ होने की प्रक्रिया के स्वाभाविक अंग हैं।
कुछ लोगों में आघात के असर लंबे समय तक देखे जाते हैं। उस हादसे का ख़याल बार-बार आना, तेज़ बेचैनी और उन यादों से दूर रहने की कोशिश करना - ये सब बातें पोस्ट-ट्रॉमेटिक-स्ट्रेस-डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण हैं। यह भी देखा गया है कि कुछ लोगों में आघात का असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दूसरे तरीकों से पड़ता है। उनका आत्म-विश्वास कम हो जाता है, उन्हें रिश्तों को निभाने में दिक्कत आती है और उनमें चिंता (एंग्जायटी), अवसाद (डिप्रेशन) या अन्य मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं पाई जाती हैं। ये लक्षण आघात के तुरंत बाद या फिर कई सालों बाद भी उभर सकते हैं।