आघात का अर्थ
आघात क्या है?
आघात का मतलब है ऐसा कोई हादसा या ज़ख्म जिस से किसी व्यक्ति की भावनात्मक अथवा शारीरिक सुरक्षा को चोट पहुंची हो।

कई हादसे हैं जिनसे किसी को आघात पहुंच सकता है। ये हादसे ज़्यादातर जान और सुरक्षा के लिए खतरा होते हैं। जंग, प्राकृतिक आपदा, शारीरिक या यौन हिंसा, कोई ऐसी परिस्थिति जो हम पर हावी हो जाती है - यह सभी आघात का एक रूप हैं।

किसी का हमारे साथ दादागिरी करना, हमारी शारीरिक समस्याएं या किसी करीबी व्यक्ति को खो देना, यह सब घटनाएं हमें आघात पहुंचाती हैं। इसी तरह, बचपन में हुआ कोई हादसा जो किसी बच्चे की सलामती और सुरक्षा पर असर डाले, यह भी आघात का कारण हो सकता है। इसमें अपने अभिभावकों से लंबे समय तक दूर रहना, घर के अस्थायी हालात, माता-पिता का लड़ना या घरेलू हिंसा, हर वक़्त बड़ों का टोकना, उपेक्षा और बुरा व्यवहार जैसी बातें शामिल हैं।
आघात का असर
आघात का प्रभाव सब पर एक जैसा नहीं पड़ता और न ही इसका असर महसूस करने का कोई सही या गलत तरीका है। हर किसी पर आघात का बुरा प्रभाव पड़ेगा और उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, ऐसा भी नहीं है।

हमें जब कोई आघात पहुंचता है तब हमारे दिमाग का 'थ्रेट सेंटर' यानि वो हिस्सा जो खतरे का सामना करने में हमारी मदद करता है, वह अधिक सतर्क हो जाता है। थ्रेट सेंटर हमें आनेवाले खतरे से सावधान करता है और हमारे शरीर को लड़ने, भागने या स्थिर रहने (फ्लाइट, फाइट या फ्रीज़ होने) के लिए तैयार करता है। कुछ लोगों में हादसे के दौरान या बाद में, जैसे ही थ्रेट सेंटर काम करना शुरू करता है, तब उसके कई दूसरे असर भी दिखाई देते हैं। आघात के कुछ शारीरिक परिणाम हो सकते हैं - चिड़चिड़ापन, ध्यान न लगा पाना और शरीर के अंगों में तनाव। आघात के भावनात्मक परिणाम भी हो सकते हैं जैसी कि बेचैनी, डर, गुस्सा और सूझबूझ का सुन्न पड़ जाना। हमारा दिमाग जब इस अनुभव को पूरी तरह महसूस करने की क्रिया में होता है तब उस हादसे की याद हमें बार-बार आती हैं। कभी फ्लैशबैक में ऐसा लगता है जैसे अभी-अभी वह घटना हमारे साथ घटी हो या कभी डरावने सपनों के रूप में वो यादें हमें सताती हैं।

अधिकतर लोगों में यह शारीरिक और भावनात्मक प्रतिक्रियाएं कुछ दिनों या हफ़्तों बाद कम होने लगती हैं। हमारे शरीर और मन को इस बात का आभास होने लगता है कि खतरे की घड़ी टल गई है और हम अब सुरक्षित हैं। हमारा थ्रेट सेंटर शांत हो जाता है। कभी-कभी ये यादें अचानक उभर कर सामने आ जाती हैं (किसी सालगिरह पर या उस आघात की कोई निशानी सामने आ जाए तब) और हमें बहुत तक़लीफ़ देती हैं। ये अनुभव किसी भी आघात के बाद हमारे मन और शरीर के दोबारा स्वस्थ होने की प्रक्रिया के स्वाभाविक अंग हैं।

कुछ लोगों में आघात के असर लंबे समय तक देखे जाते हैं। उस हादसे का ख़याल बार-बार आना, तेज़ बेचैनी और उन यादों से दूर रहने की कोशिश करना - ये सब बातें पोस्ट-ट्रॉमेटिक-स्ट्रेस-डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण हैं। यह भी देखा गया है कि कुछ लोगों में आघात का असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दूसरे तरीकों से पड़ता है। उनका आत्म-विश्वास कम हो जाता है, उन्हें रिश्तों को निभाने में दिक्कत आती है और उनमें चिंता (एंग्जायटी), अवसाद (डिप्रेशन) या अन्य मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं पाई जाती हैं। ये लक्षण आघात के तुरंत बाद या फिर कई सालों बाद भी उभर सकते हैं।
अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल
आप यदि किसी आघात की वजह से मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियों से जूझ रहे हैं तब आप यहां दिए गए कुछ उपायों से ख़ुद की मदद कर सकते हैं
1.
बुरे सपनों और पुरानी यादों (फ्लैशबैक) से मुकाबला
ग्राउंडिंग स्किल, एक ऐसा हुनर है जो आपके विचारों को वर्तमान में लाने में आपकी मदद करता है। किसी अप्रिय हादसे से बाद यह स्वाभाविक है कि आपका ध्यान बार-बार उस घटना की तरफ खिंचेगा और आपको बुरे सपनों या पुरानी यादों की वजह से कष्ट होगा। यह हुनर आपके विचारों को वापस आज की परिस्थिति की तरफ लाएगा। इसमें आपको अपना ध्यान अपनी पांचों इन्द्रियों में से किसी एक पर केंद्रित करना होगा। ऐसा आप इन तरीकों से कर सकते हैं:
  • अपने चारों तरफ़ देखें और आपको जो दिख रहा है उसकी सूची बनाएं (यह काम आप मन ही मन या फिर ज़ोर-ज़ोर से कहते हुए कर सकते हैं)
  • ऐसी 3 चीज़ों के नाम गिनाएं जो आप इस समय महसूस कर रहे हैं (उदहारण के लिए आपके पैरों तले ज़मीन, वह कुर्सी जिस पर आप बैठे हैं, आपके कपड़े जो आपकी त्वचा को छू रहे हैं, इत्यादि)
  • किसी तेज़ सुगंध वाली चीज़ को सूंघें (जैसे इत्र या खरा तेल) और सांस लेते समय अपना ध्यान उस महक पर केंद्रित रखें
  • गिनें कि आपको कितनी और कौन-कौन सी आवाज़ें सुनाई दे रही हैं
2.
किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करें
आप जिस हादसे से गुज़रे हैं और जो महसूस कर रहे हैं, उसके बारे में किसी से बात करें। ऐसा करने में आपको तक़लीफ़ हो सकती है पर इस से आपको मदद मिलेगी। जब हम अपने विचारों और भावनाओं को शब्द देते हैं तब हम उन अनुभवों के बारे में दोबारा सोचते हैं और उनके मायने ढूंढने की कोशिश करते हैं। आप किसी विश्वसनीय दोस्त, परिवार के सदस्य, पीयर सपोर्ट ग्रुप या हेल्पलाइन की मदद ले सकते हैं। अगर आप इसके बारे में बात नहीं कर पा रहे हैं तो इन बातों को किसी सुरक्षित डायरी में लिख लें।
3.
ख़ुद की देखभाल करें
अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें: एक्टिव बनें, चलते-फिरते रहे (उदाहरण के लिए, व्यायाम से आपका मूड अच्छा रहेगा), पूरी नींद लें, संतुलित पेटभर आहार लें और शराब या ड्रग्स न लें।

ऐसे काम करें जो आपके लिए महत्वपूर्ण हों: दिनचर्या में ऐसे कामों को रखें जो आपके लिए महत्वपूर्ण हैं। यह ऐसे काम हो सकते हैं जिन्हें करना ज़रूरी है, जो आपको दूसरों से जुड़े रहने में मदद करते हैं या जिन्हें करने में आपको मज़ा आता हो।

रिलैक्सेशन के तरीकों का इस्तेमाल करें: दिन भर के कामों में से रिलैक्स करने के लिए कुछ समय निकालें। आप गहरी सांस और सरल स्ट्रेचिंग के व्यायाम कर सकते हैं, गाने सुन सकते हैं, ऑनलाइन उपलब्ध रिलैक्सेशन व्यायाम या निर्देशित ध्यान (गाइडेड मैडिटेशन) के वीडियो का इस्तेमाल कर सकते हैं।
4.
विशेषज्ञों की सहायता लें
मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का इलाज संभव है। आप के पास चिकित्सा के कई विकल्प हैं। बातचीत की थेरेपी (जैसे की कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी या EMDR) और दवाइयां (जैसे कि एंटीडिप्रेसन्ट) आघात द्वारा होने वाली मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं को ठीक करने में काफ़ी असरदार रही हैं। थेरेपिस्ट, काउंसलर या साइकोलोजिस्ट इलाज के लिए बातचीत पर ध्यान केंद्रित करते हैं और साइकेट्रिस्ट वो मेडिकल डॉक्टर होते हैं जो दवाइयां दे सकते हैं। आपके लिए कौन सा इलाज सही रहेगा, इसका चुनाव आप पर निर्भर है।