ख़ुद से पूछें कि इस विचार में क्या वाक़ई कोई सच्चाई है ( ठोस सबूतों पर आधारित जानकारी) या फिर यह सिर्फ एक राय है (किसी भावना पर आधारित एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण)? आपको समझ आने लगेगा कि डिप्रेशन की आवाज़ के पास कहने को तो बहुत कुछ है पर वो सच्चाई पर कम और फ़र्ज़ी ख़यालों पर ज़्यादा निर्धारित है।
हम सभी जानते हैं कि कोई धौंस जमाए या दादागिरी करे तो उसका सबसे बढ़िया उपाय है उस पर ध्यान ही न देना, इग्नोर करना। डिप्रेशन की आवाज़ के साथ भी हम ऐसा ही कर सकते हैं। जब नकारात्मक विचारों के बादल मंडराने लगते हैं तब हम उन्हें अनदेखा और अनसुना कर दें तो वो अपने आप छंटने लगेंगे।
स्वयं की पहचान को आत्मबोध कहते हैं। हमें अपनी भावनाओं और चिंतन प्रणाली का स्पष्ट रूप दिखने लगे, तब समझ जाएं कि इस यात्रा की शुरुआत हो चुकी है। उथल-पुथल मचाते विचारों की दुनिया से एक कदम पीछे हटें, एकाग्र चित्त से ध्यान लगाएं और आत्मबोध का अनुभव करें। विचारों को खुली छूट दे दें जिस से वो बेरोक-टोक आ-जा सकें पर आप को छू भी न सकें। ऑनलाइन उपलब्ध मैडिटेशन ऐप्स की मदद से आत्मबोध (माइंडफुलनेस) की क्रियाएं कर के देखें।